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जगद्गुरु शङ्कराचार्य अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण संस्थान, जगद्गुरु शंकराचार्य सनातनधर्म संरक्षण न्यास वृंदावन मथुरा द्वारा प्रस्तावित एक शैक्षणिक प्रकल्प है। वर्तमान में इसका एक लघुरूप वृंदावन में स्थित हैं। जहां वैदिक शास्त्रों का अध्ययन अध्यापन एवं प्रशिक्षण कार्य होता है इसके साथ ही गुरुकुल भी चलता है। जगद्गुरु शंकराचार्य अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान का उद्देश्य समस्त वैदिक शास्त्रों में शोध एवं अनुसंधान करके इनके गूढ़ रहस्यो को जानने वाले लाखों विद्वान आचार्य तैयार करना है जिससे इन विद्वानों के माध्यम से इन समस्त शास्त्रों में वर्णित समस्त विद्याओं, कलाओं एवं विधाओं का ज्ञान सनातनी समाज को हो सके और इस प्रकार समाज में सनातनधर्म के शुद्ध स्वरूप की स्थापना हो सकें।

जगद्गुरु शंकराचार्य सनातनधर्म संरक्षण न्यास, वृंदावन मथुरा से पंजीकृत एक पारमार्थिक संस्था है जो कि पिछले कुछ वर्षो से वैदिक सनातनधर्म के संरक्षण एवं विस्तार के लिए कार्य कर रही है। यह संस्था सनातनधर्म के मुख्य अंग जैसे वैदिक गुरुकुल, देवालय, गौ आदि के संरक्षण एवं संवर्धन पर कार्य करती है। इनमें से भी मुख्य रूप से वैदिक शास्त्रों के अध्ययन अध्यापन की परंपरा को बढ़ावा देना संस्था का मुख्य कार्य है।

संस्था का परम उद्देश्य आद्यजगद्गुरु शंङ्कराचार्य जी के दिखाए मार्ग पर चलकर वैदिकशास्त्र सम्मत वर्णाश्रम आधारित शासनपद्धति, जीविकापद्धति, शिक्षापद्धति, आचारपद्धति, न्यायपद्धति आदि की स्थापना करना है। यह संस्था पिछले 3 वर्षों से लगातार कार्य कर रही है। इसके संरक्षक एवं मुख्य न्यासी आचार्य पंडित श्रीनर्मदेश्वर द्विवेदी गुरुजी हैं एवं अध्यक्ष आचार्य पंडित श्रीराजेश राजौरिया वैदिक जी हैं। इसके अतिरिक्त अन्य अनेक वैदिक आचार्य संस्था के अंतर्गत वैदिकशिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं।

यह संस्था सनातनधर्म के लिए वैदिक शास्त्रों के सिद्धान्तों को ही सर्वोच्च एवं प्रामाणिक मानती है तथा सनातनधर्म के सर्वोच्च एवं सार्वभौम गुरु भगवान् श्रीमदाद्यजगद्गुरु शङ्कराचार्य से प्रेरणा लेकर उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए वैदिक शिक्षा के माध्यम से मानव कल्याण के लिए कार्य करती है।

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इस संस्था के निर्माण का ध्येय

लगभग पिछले एक हजार वर्षों का भारत का इतिहास देखें तो यह स्पष्ट है कि विदेशी आक्रांताओं के द्वारा न केवल हम भारतीयों के ऊपर सामाजिक और आर्थिक रूप से अत्याचार हुएं बल्कि हम भारतीयों के सनातन धर्म, संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं आदि सभी को मिटा देने के लिए निरन्तर प्रयास होता रहा है और आज भी हो रहा है। पूर्व के समय में समस्त भारतीय एकजुट होकर अपने राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति आदि की रक्षा के लिए विधर्मी आक्रांताओं से युद्ध लड़ता रहा था पर आज वर्तमान में ऐसी परिस्थिति आ गई है कि हमें अपने ही भारतीय किंतु आधुनिकता के आंधी में मैकाले शिक्षा से शिक्षित धर्म, संस्कृति एवं परंपरा विरोधी एक वर्ग से लड़ना पड़ रहा है।

आज भारत का नागरिक दैहिक, दैविक एवं भौतिक तीनों प्रकार के दुखों से पीड़ित है इसके पीछे का कारण है कि भारतीय जनता ने जाने अनजाने में जीवन की समस्त मूलभूत सामाजिक व्यवस्थाओं का संचालन भारतीय वैदिक सिद्धांतो पर न करके पाश्चात्य अंग्रेजी सिद्धांतों पर कर लगा है। यह व्यवस्थाएं हैं परिवार व्यवस्था, जीविका व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, शासन व्यवस्था आदि।

आज भारत का नागरिक दैहिक, दैविक एवं भौतिक तीनों प्रकार के दुखों से पीड़ित है इसके पीछे का कारण है कि भारतीय जनता ने जाने अनजाने में जीवन की समस्त मूलभूत सामाजिक व्यवस्थाओं का संचालन भारतीय वैदिक सिद्धांतो पर न करके पाश्चात्य अंग्रेजी सिद्धांतों पर कर लगा है। यह व्यवस्थाएं हैं परिवार व्यवस्था, जीविका व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, शासन व्यवस्था आदि।

आज भारत में हाहाकार मचा हुआ है हर कोई किसी न किसी कारण से दुखी है पर वो समझने के लिए तैयार नहीं है। आज सनातनधर्म की स्थिति बहुत ही भयावह हो गई है। धर्म के नाम पर पाखण्ड व्याप्त हो गया है। विधर्मी डंके के चोट पर सनातनधर्म के मान बिंदुओं का अपमान कर रहे हैं। वैदिक शास्त्रों के अध्ययन अध्यापन की परंपरा मृतप्राय हो गई है। सारे सद्ग्रंथ भी धीरे धीरे नष्ट हो रहे हैं। धर्मशास्त्र के ज्ञान से शून्य आम जनता धर्म के नाम पर पाखण्ड करने में लगी हुई है। ऐसी विकट परिस्थिति में विचार करने पर हमें एकमात्र यही उपाय दिखता है कि आज के समय में भारत के नागरिकों की सबसे बड़ी आवश्यकता है उनको सही शिक्षा मिले। वो शिक्षा जो भारतीयों को चिंतनशील बनाए, उनमें नैतिक मूल्य स्थापित करें उन्हें अपनी संस्कृति, परम्परा और धर्म से जोड़ कर रखें। वो जो उन्हें तर्कयुक्त, भ्रमरहित, श्रद्धावान और विवेकवान बनाए। ऐसा तभी संभव है जब हम वैदिक शास्त्रीय गुरुकुलीय पद्धति से भारत के प्रत्येक नागरिक को शिक्षित और प्रशिक्षित करेंगे। ऐसा करने पर भारत से सामाजिक, धार्मिक समस्त प्रकार के पाखण्ड दूर किये जा सकते हैं और भारत में वैदिक धर्म की भी प्रतिष्ठा की जा सकती है।

अंग्रेजों ने भारत से जाने के पूर्व भारत में न केवल ऐसी सामाजिक व्यवस्थाएं स्थापित कर दी जो भारतीय न होकर उनके द्वारा रचित थी बल्कि उन समस्त व्यवस्थाओं को अर्थात एक प्रकार से भारत की बागड़ोर ऐसे लोगों के हाथों में सौप दी जो देखने में भारतीय लगते थें पर मानसिक रूप से उन्हीं अंग्रेजों के असभ्य मान्यताओं को समाज के संचालन का आधार मानते थें तथा उसी के अनुसार चिंतन करते थें। दुर्भाग्य से यह समस्या आजतक बनी हुई है। इसका परिणाम यह हुआ कि वर्तमान में भारत एक ऐसी मानसिक परिस्थिति में ढल चुका है जिससे भारत के नागरिक स्वयं ही अपने पतन का मार्ग चुन रहे हैं क्योंकि उनके चिंतन का मापदंड ही भारतीय नहीं है।

यदि धर्म संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा करनी है साथ ही मानव समाज का भी कल्याण करना है तो हमें व्यापक रूप से एक ऐसे सामाजिक चेतना का निर्माण करना होगा जो भारतीय मापदंडों के आधार पर चिंतन करती हो तभी जाकर भविष्य में भारत में भारतीयता की स्थापना हो सकेगी। यह सामाजिक चेतना केवल वैदिक शिक्षा पद्धति से ही संभव है अन्यथा सही शिक्षा के अभाव में मानव निरंतर पशुवत होता जा रहा है और अपने समूल विनाश की ओर आगे बढ़ता जा रहा है।

आज हिंदू समाज की सबसे पहली आवश्यकता है उसका समस्त प्रकार का भ्रम दूर करके उसको मानव जीवन का रहस्य समझाना और यह केवल ऋषियों के दिखाएं मार्ग पर चलकर ही संभव है। हमारी संस्था लगातार ऋषियों के मत की स्थापना में लगी है।

वर्तमान में हमारी संस्था का पूरा कार्य हमारे शास्त्रों के ऊपर ही है। समस्त शास्त्रों का अध्ययन, अध्यापन, शोध एवं अनुसंधान करके इसके आधार पर आम हिंदू जनता को प्रशिक्षित करना यह हमारा लक्ष्य है जिससे प्रत्येक हिन्दू विधि अनुसार धर्म को अपने जीवन में उतार कर अपना कल्याण कर सके और भारत में धर्म की स्थापना भी कर सके।

भारत का खोया वैभव यदि पुनः ले कर आना है तो इसका एकमात्र उपाय है गुरुकुलीय वैदिक शिक्षा पद्धति के अनुसार समाज को शिक्षित करना। इसके अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय नहीं है।

भारत के बच्चों को राम सिया के दिखाए मार्ग पर चलने के लिए जो शिक्षा मिलनी चाहिए वो अब मिलनी बंद हो चुकी है। अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था में पढ़कर भारतीय बच्चे अंग्रेज बन रहे हैं राम और सीता नहीं। भारत की जनता भी व्यापक रूप से नहीं चाहती उनके बच्चे राम और सीता बने इसलिए वो ऐसे संस्कार और शिक्षा देने से बचते हैं अतः व्यापक रूप से वो ऐसा कोई प्रयास नहीं करते जिससे कि वैदिक शिक्षा देने वाले गुरुकुलों का विकास हो उन्हें बढ़ावा दिया जाए जिसका परिणाम यह हो रहा है कि गुरुकुल दम तोड़ रहें हैं।

भारतीयों को अपने धर्म, राष्ट्र एवं स्वयं की रक्षा करनी है तो सबसे पहले उन्हें गुरुकुलों की और लौटना होगा और अपने समस्त शास्त्रों का अध्ययन अध्यापन करना होगा। अपने छात्रों को धर्म ग्रंथों को पढ़ाना होगा समस्त विद्याओं, कलाओं एवं विधाओं में शिक्षित एवं प्रशिक्षित करना होगा। वास्तव में शिक्षा तो एक मात्र वही हैं जो हमारे वैदिक शास्त्रों में निहित है इसी से मनुष्य एवं सम्पूर्ण जगत का कल्याण हो सकता है। वैदिक शास्त्रों के समस्त शिक्षाओं, विद्याओं कलाओं को भारत के सभी नागरिकों तक पहुंचाना हमारा लक्ष्य है।

मनुष्य की सभी आवश्यकताओं में से सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है शिक्षा जिसके बिना एक व्यवस्थित समाज की स्थापना हो ही नहीं सकती। आज शिक्षा के नाम पर समाज को जो सिखाया जा रहा है उसमें नैतिक मूल्यों का अभाव है साथ ही यह शिक्षा समाज को व्यवस्थित करने की समझ नहीं दे सकती जिसके कारण समाज निरंतर दुखी है। आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व आदि जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने समूचे अखंड भारत में कई बार भ्रमण कर के सनातन धर्म के सिद्धान्तों को जनमानस तक पहुँचाया और गलत सिद्धान्तों को अपने तर्क और शास्त्र प्रमाण के साथ खण्डित किया। इस प्रकार लगभग मृतप्राय हो चुकी सनातनधर्म को पुनः भारतवर्ष में प्रतिष्ठित कर दिया। ऐसा कर देने से भारत की समस्त समस्याएं समाप्त हो गईं थीं और भारत उन दिनों अपने सर्वश्रेष्ठ स्थिति में पहुंच गया था।

यदि भारतीयों को पुनः भारत को उसी स्थिति में लाना है जो राम जी के समय में था अथवा युधिष्ठिर अथवा आद्य जगद्गुरुशंकराचार्य जी के काल में था तो हमें पुनः अपनी वैदिक शिक्षा पद्धति को समाज में स्थापित करना होगा और अपने वर्तमान एवं भावी पीढ़ी को गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति से शिक्षित करना होगा।

इन सब बातों को भली प्रकार समझते हुए जगद्गुरु शंकराचार्य सनातनधर्म संरक्षण न्यास एवं इसके अन्तर्गत जगद्गुरु शंकराचार्य अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई है।

हमारी कार्य योजना

हमारी योजना में सबसे पहला कार्य है अपने ईश्वर एवं हमारे पूर्वजों के द्वारा उपलब्ध कराए गए ज्ञान के भण्डार, मानव जीवन के लिए परम आवश्यक हमारे समस्त वैदिक शास्त्रों का संरक्षण एवं उनका अध्ययन अध्यापन करना।

इसके लिए हम समस्त शास्त्रों का एक विशाल पुस्तकालय बनवाने का लक्ष्य रखें हैं जहां न केवल सारे शास्त्र उपलब्ध हो सके बल्कि उनमें शोध एवं अनुसंधान भी किया जा सके। आगे शीघ्र ही हम प्राचीन वैदिक ग्रंथों के खोज में एक अभियान भी चलाने वाले हैं।

पुस्तकालय निर्माण के पश्चात् समस्त शास्त्रों के कम से कम एक विद्वान आचार्य नियुक्त करना अथवा निर्माण करना हमारा अगला कार्य होगा। फिर समस्त विषयों के अनेक आचार्य तैयार किए जायेंगे। आगे इन आचार्यों के द्वारा शास्त्रों में शोध अनुसंधान, अध्ययन, अध्यापन के कार्य को बढ़ावा दिया जाएगा।

इसके पश्चात् समस्त आचार्यों की समिति द्वारा सामूहिक रूप से हिंदू समाज में सनातनधर्म से संबंधित फैली समस्त भ्रांतियों अथवा भ्रमों को शास्त्रीय आधार पर दूर कर दिया जाएगा। फिर अधिक से अधिक गुरुकुलों का निर्माण करके छात्रों को समस्त शास्त्रों एवं विद्याओं का अध्यापन कराना आरंभ करेंगे। इसके साथ साथ हम आम हिंदू जनता को मानव समाज के धर्मानुसार वैदिक स्वरूप, वर्तमान के विकृत स्वरूप एवं भावी विनाशकारी स्वरूप पर संवाद करके उन्हे समस्त रहस्यों, षड्यंत्रों की समझ देंगे जिससे वो चिंतनशील बनकर समस्याओं के समाधान के लिए स्वतः एकजुट और तैयार हो जाएं। इसके साथ साथ हम हिंदुओं को शास्त्रीय आचारों से युक्त उनके धर्म अर्थात कर्तव्यों की शिक्षा एवं प्रशिक्षण देंगे। आज के हिसाब से प्रत्येक हिन्दू को धर्मरक्षा की दृष्टि से भी बौद्धिक एवं शारीरिक स्तर पर शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जायेगा साथ ही दैवीय बल प्राप्ति के लिए प्रत्येक हिन्दू को किसी न किसी दैवीय उपासना में दीक्षित करके उन्हे तपस्वी एवं शक्ति संपन्न भी बनायेंगे।

इसके पश्चात् धार्मिक रूप से परिपक्व इन प्रशिक्षित धर्मयोद्धाओं को धर्म, समाज और राष्ट्र के समस्त क्षेत्रों में भेजा जाएगा जो हर स्थिति में धर्म के लिए ही समर्पित रहेंगे और धर्मस्थापना में सहायक सिद्ध होते रहेंगे। कुल मिलाकर हमें कुछ हजार शुद्ध ब्राह्मण, कुछ हजार शुद्ध क्षत्रिय और कुछ हजार ही शुद्ध वैश्य चाहिए। यदि हमें इतना प्राप्त हो गए तो शूद्रों की अनेकों जातियों का सनातनधर्म के लिए हमें सहयोग मिल ही जाएगा। इनके बलपर भारत को पूर्णतः वैदिक धर्मराष्ट्र में स्थापित कर दिया जाएगा जिससे सर्वत्र सुख और शांति स्थापित हो सकेगी और मनुष्य समाज अपने जीवन के लक्ष्य को निरंतर प्राप्त करते हुए आगे बढ़ता रहेगा।

आगे बहुत सी योजनाएं हैं पर वो सार्वजनिक नहीं कर सकते। आने वाले 10 वर्ष में ईश्वरीय बल से हमलोग भारत में बहुत बड़ा परिवर्तन ला देंगे।

आप कैसे हमारे साथी बन सकते हैं?

हमारे समूह का हिस्सा बनने के लिए समस्त सच्चे हिंदुओं का आमंत्रण है। जो मिश्रित बीज हैं अथवा जिनके बीज अर्थात जाति वर्ण का पता नहीं है ऐसे लोग भी यदि धर्म के प्रति निष्ठावान हैं तो उनके कल्याण के लिए भी हम उन्हें मार्ग दिखलाएंगे। आप यदि किसी पद, प्रतिष्ठा, लाभ की भावना से रहित होकर केवल वैदिक सनातनधर्म को अपना जीवन समर्पित करना चाहते हैं तभी हमारे समूह में आएं क्योंकि भौतिक निजी स्वार्थों से जुड़ने वाला व्यक्ति हमारे समूह में ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएगा। समर्पित होने का मतलब घर द्वार परिवार छोड़ देने की बात नहीं कर रहे हैं। संपर्पित का तात्पर्य है विधि अनुसार धर्म के लिए अपना जीवन जीना एवं हमे भी सहयोग करना।

जब तक प्रत्येक भारतीय हिंदू वैदिक धर्म और उपासना का शिक्षण और प्रशिक्षण नहीं प्राप्त कर लेता तबतक वो धर्म के लिए लड़ भी नहीं पाएगा क्योंकि उसे धर्म के स्वरूप का ज्ञान ही नहीं हो पाएगा। आप हमसे जुड़कर धर्मकार्य में सहयोगी बनकर अपना एवं अपने समाज का कल्याण कर सकते हैं। संस्था से जुड़ने के लिए आप इस वेबसाइट पर अपना पंजीकरण करें। पंजीकरण के लिए इस लिंक जाएं एवं अपनी पूरी जानकारी बताएं।

अन्य किसी जानकारी के लिए आप हमें संपर्क कर सकते हैं।

इसके पश्चात् धार्मिक रूप से परिपक्व इन प्रशिक्षित धर्मयोद्धाओं को धर्म, समाज और राष्ट्र के समस्त क्षेत्रों में भेजा जाएगा जो हर स्थिति में धर्म के लिए ही समर्पित रहेंगे और धर्मस्थापना में सहायक सिद्ध होते रहेंगे। कुल मिलाकर हमें कुछ हजार शुद्ध ब्राह्मण, कुछ हजार शुद्ध क्षत्रिय और कुछ हजार ही शुद्ध वैश्य चाहिए। यदि हमें इतना प्राप्त हो गए तो शूद्रों की अनेकों जातियों का सनातनधर्म के लिए हमें सहयोग मिल ही जाएगा। इनके बलपर भारत को पूर्णतः वैदिक धर्मराष्ट्र में स्थापित कर दिया जाएगा जिससे सर्वत्र सुख और शांति स्थापित हो सकेगी और मनुष्य समाज अपने जीवन के लक्ष्य को निरंतर प्राप्त करते हुए आगे बढ़ता रहेगा।

सचिव
जगद्गुरु शंकराचार्य सनातनधर्म संरक्षण न्यास
वृंदावन मथुरा उत्तर प्रदेश