आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व जब संसार में सर्वत्र मनमाने शास्त्र विरुद्ध मत पंथ आदि उग आए थें तब मानव समाज धीरे धीरे वैदिक ज्ञान से दूर हो चला था। सर्वत्र अधर्म ही अधर्म व्याप्त हो गया था। नास्तिकता ने संसार को निगल लेने के लिए मानो अपना पूरा जाल बिछा रखा था तब साक्षात भगवान् शिव धरती पर शङ्कर के रूप में अवतरित हुए और वैदिक शास्त्रों के बल पर अनेकों अवैदिक मतों, पंथों को शास्त्रार्थ में पराजित करके, संसार की अज्ञानता दूर कर समाज को पुनः वैदिक व्यवस्था में स्थापित कर जगत् के गुरु सिद्ध हुए और संसार के द्वारा धर्म के सर्वोच्च शासक के रूप में स्वीकार किये गए। भगवान् आदि गुरु शंकराचार्य जी भविष्य में भी सनातन धर्म के संरक्षण के लिए भारत के चारों दिशाओं में चतुष्पीठ की स्थापना कर के संसार को मार्गदर्शन करने के लिए जगद्गुरु शंकराचार्य की परम्परा स्थापित किए जो अब तक अविच्छिन्न है और आज भी उन्हीं चार पीठों के आचार्य वास्तव में इस सनातन जगत् के सर्वोच्च गुरु हैं।
आज अगर देखा जाए तो मानव समाज पुनः उसी विकट स्थिति में आ गया है जो आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य जी के समक्ष था। आज भी समाज में नाना प्रकार के मत पंथ उग आए हैं जो मनुष्य को धर्म के नाम पर धर्म से ही भटका रहे हैं, वेद के नाम पर वेद के विरुद्ध शिक्षा दे रहे हैं। दशकों से पैसा, प्रचार और सत्ता के बल पर अज्ञानी मानव समाज को पतन की राह पर धकेला जा रहा है जो आज तक निरन्तर जारी है।
ऋषियों ने बताया है कि मानव जीवन के चार पुरुषार्थ हैं जो क्रमशः धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं। इनमें पहला पुरुषार्थ धर्म है। धर्म से ही अर्थ और काम की पूर्ति हो सकती है। मनुष्य अर्थ और काम तो चाहता है परन्तु वेदों द्वारा बताए गए सनातन धर्म पर चलना नहीं चाहता।
मनुष्य स्वयं सुखी रहने की कामना में निरन्तर प्रयास कर रहा है इसके लिए प्रकृति के साथ भी अन्याय कर रहा है पर ऐसा करके वो स्वयं को विनाश की ओर धकेल रहा है।
मनुष्य को एक अच्छा जीवन जीने के लिए जो मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं वो हैं जीविका (आय का स्रोत), चिकित्सा, शिक्षा, न्याय, सुरक्षा, स्वस्थ प्रकृति और जीवन पद्धति अर्थात सिद्धान्त। जब मनुष्य को यह सब प्राप्त नहीं होता तब वो भयभीत होने लगता है। इसके अतिरिक्त यदि उसे कुछ भौतिक वस्तुएं मान सम्मान पद प्रतिष्ठा या धन प्राप्त भी होता है तो वो और अधिक प्राप्त करने का लालच करने लगता है।
इस भय, लालच और अज्ञानता के कारण व्यक्ति स्वधर्म पालन न करके किसी ऐसे चमत्कारी बाबा, देवता, या क्रिया की खोज करने लगता है जिससे आसानी से उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो जायें। इसके लिए वो तरह तरह के ढोंग करने लगता है, धूर्त बाबाओं और मनमाने अवैदिक अशास्त्रीय क्रियाओं में पड़ने लगता है, भूत प्रेत के साधकों के पास जाता है। इनसब बातों में पड़कर वो अनेक प्रकार से ठगा तो जाता ही है साथ ही धर्म से भी पूर्णतः विमुख होकर अधर्मी हो जाता है।
समाज की इस मानसिकता का लाभ उठाकर अनेक संगठन, धूर्त नकली गुरु मनमाने अवैदिक मत पंथ, नकली भगवान् बनाकर लोगों को तरह तरह का लालच और झूठ परोस कर अपने साथ जोड़ लेते हैं और इस प्रकार समाज को धर्म विमुख करके उसके धन का दोहन करते रहते हैं जिससे समाज में तेजी से अधर्म, अशास्त्रीयता फैलती रहती है और अंततः समूचा मानव समाज नष्ट हो जाता है।
आज पूरे भारत में इसी प्रकार के अवैदिक मनमाने मत, पंथ, नकली देवता और उनकी पूजा पाठ का प्रकल्प चल रहा है। इन सबके पीछे अनेक अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां भी कार्य कर रही हैं जिसके पीछे उनका ध्येय है भारत से सनातनधर्म को पूर्णतः समाप्त करके अब्राहमिक मत स्थापित कर सदैव के लिए भारत की मूल पहचान को नष्ट कर देना।
यदि हम अपने धर्म, संस्कृति, परम्परा पहचान को बचाए रखना चाहते हैं तो हमे इन अधर्मियों के खिलाफ एकजुट होना होगा और परम्परा प्राप्त आचार्यों के मार्गदर्शन में धर्म को जानना, समझना और आने वाली पीढ़ी को शिक्षित करना होगा।
वैदिक सनातनधर्म ईश्वर अथवा वेद प्रदत्त समस्त भिन्न भिन्न मानवीय कर्तव्यों का नाम है और यदि इसे विस्तार से कहें तो इस चराचर जगत में जो कुछ भी है उन सबका ईश्वर द्वारा तय कर्तव्य ही उनका स्वधर्म है जो सनातनधर्म कहलाता है अथवा शास्त्र द्वारा बताए ऐसे सभी नियम जिनका पालन करने से मानव का कल्याण होता है वो धर्म है। किसी भी समाज में सनातनधर्म की स्थापना हो जाने से समाज स्थिर हो जाता है, सभी तरह की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं, लोगों में नैतिकमूल्य और चरित्र की स्थापना हो जाती है। प्रत्येक व्यक्ति समस्त दिव्य मानवीय गुणों से युक्त होकर परस्पर सम्मान और प्रेम से रहने लगता है। प्रकृति के सभी अंग सुस्थिर हो जाते हैं। मनुष्य के जीवन के लिए आवश्यक सभी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है।
समाज भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर चल पड़ता है। चारों ओर सुख, समृद्धि, शान्ति, प्रेम और न्याय का वातावरण हो जाता है। मनुष्य अपने सर्वोच्च मानवीय सद्गुणों को प्रकट कर आपस में प्रेमयुक्त व्यवहार करने लगता है। शास्त्रों में इसी स्थिति को रामराज्य अथवा धर्मराज्य कहा गया है।
अगर संक्षेप में कहें तो हमारे संस्थान से जुड़ने से प्रत्येक व्यक्ति को जगत् के अनुकूल समस्त मानवीय गुणों का विकास और उसका सुख, स्वाभाविक सामाजिक सुनिश्चितता, सुरक्षित पारिवारिक सामाजिक भविष्य के साथ आनंददायक जीवन जीते हुए पीढ़ी दर पीढ़ी मोक्ष मार्ग की और प्रशस्ति का अवसर प्राप्त होगा।
सनातन वैदिक वर्णाश्रम आधारित धर्मराज्य की स्थापना तभी हो सकती है जब प्रत्येक व्यक्ति स्मृति (धर्मशास्त्र) आधारित सामाजिक व्यवस्थाओं को स्वीकार करे और स्वधर्म का पालन करे।
हमारा मानना है कि यदि हम भारतके प्रत्येक परिवार में शास्त्र सम्मत धर्म की स्थापना करने में सफल हो गए तो हम धार्मिक समाज की रचना कर लेंगे और फिर इसी प्रकार धर्मराज्य की भी स्थापना कर लेंगे क्योंकि परिवारों से समाज बनता है और समाज से राष्ट्र। अतः जिस अनुपात में परिवार धार्मिक होते जायेंगे उसी अनुपात में धर्मराज्य की स्थापना भी होती चली जाएगी और इसी प्रकार एक दिन पूरे भारत में और फिर पूरे विश्व में हम शास्त्र सम्मत सनातन वैदिक धर्मराज्य की स्थापना कर पायेंगे।
संस्थान की कार्यपद्धति में सबसे पहला कार्य है आम जन को शास्त्र सम्मत स्वधर्म की शिक्षा देना जिससे लोगों को उनका स्वधर्म पता चल सके। इसके पश्चात् समस्त शास्त्रों की शिक्षा देना।
शिक्षा देने के लिए योग्य शिक्षकों की आवश्यकता होती है। अतः मानव जीवन को सर्वोत्कृष्ट बनाने के लिए जिन समस्त सनातन वैदिक विषयों के शिक्षा की आवश्यकता है उन सभी विषयों के आचार्यों को संग्रहीत कर अथवा आचार्यों का समूह तैयार कर, संस्थान अपने उद्देश्यों की पूर्ति करेगा।
सबसे पहले परम्परा प्राप्त आचार्यों को वेद, वेदाङ्ग आदि समस्त सनातन शास्त्रों के अध्यापन के लिए नियुक्त करना और इन सभी शास्त्रों में शोध अनुसन्धान करके योग्य छात्रों को शिक्षित करके विद्वत् समूह का निर्माण करना।
फिर इन्ही विद्वानों को भारत के समस्त हिस्सों में भेजकर वहाँ समस्त नागरिकों को वैदिक शिक्षा से शिक्षित और प्रशिक्षित करना संस्थान का प्रमुख लक्ष्य होगा जिससे समाज के अन्तिम व्यक्ति तक को न केवल उसके कर्तव्यों का बोध हो सके बल्कि उसके समस्त पुरुषार्थों की उपलब्धि का मार्ग भी प्रशस्त हो सके, इस प्रकार मनुष्य समस्त मूलभूत आवश्यकताओं को प्राप्त कर अपने कर्त्तव्यों को निभाते हुए एक उच्चकोटि का जीवन जी सके।
जब इस प्रकार प्रत्येक मनुष्य स्वधर्म में रत हो जाएगा तब उस दिन समाज मे पूर्णतः सनातन धर्म स्थापित हुआ कहा जा सकेगा।
भारत सहित विश्व को वैदिक शास्त्रों के शुद्ध ज्ञान की शिक्षा देने के लिए हमारा संस्थान एवं हमारे आचार्य आद्यजगद्गुरु शंकराचार्य भगवत्पाद के पदचिन्हों पर चलते हुए निरन्तर प्रयास कर रहे हैं । हम तभी सफल होंगे जब आप सभी सनातनधर्मी हमारा साथ देंगे। सारी योजनाएं तैयार हैं हमें आपकी आवश्यकता है। आप इस यज्ञ में क्या आहुति दे सकते हैं अवश्य बताएं?
समाज भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर चल पड़ता है। चारों ओर सुख, समृद्धि, शान्ति, प्रेम और न्याय का वातावरण हो जाता है। मनुष्य अपने सर्वोच्च मानवीय सद्गुणों को प्रकट कर आपस में प्रेमयुक्त व्यवहार करने लगता है। शास्त्रों में इसी स्थिति को रामराज्य अथवा धर्मराज्य कहा गया है।
अगर संक्षेप में कहें तो हमारे संस्थान से जुड़ने से प्रत्येक व्यक्ति को जगत् के अनुकूल समस्त मानवीय गुणों का विकास और उसका सुख, स्वाभाविक सामाजिक सुनिश्चितता, सुरक्षित पारिवारिक सामाजिक भविष्य के साथ आनंददायक जीवन जीते हुए पीढ़ी दर पीढ़ी मोक्ष मार्ग की और प्रशस्ति का अवसर प्राप्त होगा।
संरक्षक/प्रधान आचार्य
-जगद्गुरु शंकराचार्य अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान
ब्रजाधाम कॉलोनी वृंदावन मथुरा